प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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.... इस तरह दो साल गुजर गये। ज्ञानशंकर का सौभाग्य-सूर्य अब मध्याह्न पर था। राय साहब के ऋण से वह बहुत कुछ मुक्त हो चुके थे। हाकिमों में मान था, रईसों ...

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